
पंचायत सीजन 4 रिव्यू: राजनीति और गहराई, लेकिन पहले जैसी मासूमियत नहीं रही
New Delhi :
अमेज़न प्राइम वीडियो की पॉपुलर वेब सीरीज़ पंचायत का चौथा सीजन आखिरकार दर्शकों के सामने आ चुका है। हर बार की तरह इस बार भी फुलेरा गांव की कहानियां और किरदारों की आपसी खट्टी-मीठी नोकझोंक लोगों को देखने को मिली। हालांकि, इस बार कहानी का मिजाज कुछ बदला-बदला सा नजर आता है।
कहानी में इस बार है राजनीति का गहरा असर
इस सीजन में जहां एक तरफ गांव की राजनीति और साजिशें ज्यादा गहराई से दिखाई गई हैं, वहीं दूसरी ओर पिछले सीजन की मासूमियत और हल्के-फुल्के हास्य का वो जादू थोड़ा फीका पड़ता दिखा।
सच कहें तो, पंचायत सीजन 4 एक गंभीर मोड़ पर है। प्रधान जी, सचिव जी और उप-प्रधान प्रह्लाद जी के बीच की केमिस्ट्री इस बार भी मजबूत है, लेकिन उनका हास्यपुर्ण अंदाज़ अब राजनीति की धुंध में कहीं छिपता नजर आता है।
एक्टिंग अब भी दमदार, पर भावनाओं में भारीपन
जहाँ तक एक्टिंग की बात है, जितेन्द्र कुमार (अभिषेक त्रिपाठी) ने एक बार फिर बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है। नीना गुप्ता, रघुवीर यादव और चंदन रॉय ने अपने-अपने किरदारों में जान डाल दी है। मगर, भावनात्मक पहलुओं को लेकर इस बार ट्रीटमेंट थोड़ा गंभीर हो गया है, जिससे दर्शकों को अब हल्के मन से सीरीज देख पाना मुश्किल लगता है।
क्या पहले जैसा मज़ा आता है?
अगर आप पंचायत को उसके सरल हास्य, छोटे-छोटे जीवन के दृश्य और दिल को छूने वाले संवादों के लिए पसंद करते आए हैं, तो यह सीजन आपके लिए थोड़ा निराशाजनक हो सकता है।
बेशक, कहानी में गहराई आई है और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को गंभीरता से उठाया गया है, लेकिन उसी के साथ वह पुराने दिनों वाली मासूमियत और अपनापन भी कम होता चला गया है।
तकनीकी पक्ष और निर्देशन
सीरीज का डायरेक्शन अब भी सटीक है। कैमरा वर्क, बैकग्राउंड म्यूजिक और लोकेशन पहले की तरह ही प्राकृतिक और असली लगते हैं। लेकिन स्क्रिप्ट में अब उतना नयापन नहीं है, जितना कि दर्शकों ने पहले तीन सीजन में महसूस किया था।
