भारत अब सच में “लोकल टू वोकल” के रास्ते पर चल पड़ा है। देश के गृह मंत्री अमित शाह ने अब विदेशी ईमेल प्लेटफ़ॉर्म को छोड़कर भारत में बनी कंपनी Zoho Mail को अपनाया है। उन्होंने अपने नए ईमेल पते (amitshah.bjp@zohomail.in) को X (पहले Twitter) पर शेयर करते हुए लिखा, “Hello everyone, kindly note…” और सभी को बताया कि अब वे Zoho Mail का इस्तेमाल करेंगे।
ये कदम केवल टेक्नोलॉजी का नहीं, बल्कि एक संदेश है — भारत अब अपनी डिजिटल ताकत खुद बनाना चाहता है।
“स्वदेशी टेक” की दिशा में बड़ा संकेत
जब देश के गृह मंत्री जैसे बड़े नेता कोई भारतीय टेक प्लेटफ़ॉर्म अपनाते हैं, तो इसका मतलब साफ है — भारत अब विदेशी कंपनियों पर निर्भरता घटाना चाहता है। सरकार लंबे समय से “Make in India” और “Digital India” की बात करती रही है, और अब वह खुद इस विचार को जी रही है।
कुछ महीने पहले आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने भी Zoho के प्रोडक्ट्स अपनाए थे। उनके कदम के बाद Zoho Mail के यूज़र्स में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई थी। अब अमित शाह के इस कदम ने Zoho के लिए नई लहर पैदा कर दी है।
आखिर क्यों चुना गया Zoho Mail?
Zoho एक भारतीय कंपनी है, जिसका मुख्यालय चेन्नई में है। इसके फाउंडर श्रीधर वेम्बू ने हमेशा कहा है कि उनका मकसद विदेशी प्लेटफ़ॉर्म की कॉपी बनाना नहीं, बल्कि भारत के लिए बेहतर विकल्प देना है।
Zoho Mail की खासियतें:
- यह पूरी तरह विज्ञापन-मुक्त (Ad-free) है।
- यूज़र का डेटा भारत में ही सेव किया जाता है।
- आप इसमें अपना कस्टम डोमेन इस्तेमाल कर सकते हैं (जैसे @yourname.in)।
- यह Zoho के बाकी ऐप्स (Docs, CRM, Projects, Sheet आदि) से जुड़ा हुआ है।
- सबसे बड़ी बात — यह प्राइवेसी और डेटा सुरक्षा पर बहुत ज़ोर देता है।
Zoho का कहना है कि भारतीय यूज़र्स का सारा डेटा भारत के सर्वर्स (मुंबई, दिल्ली, चेन्नई) में स्टोर किया जाता है। इसका मतलब है कि आपका डेटा किसी विदेशी कंपनी के पास नहीं जाता।
“डेटा भारत में, भरोसा भारत में”
आज के समय में डिजिटल संप्रभुता (Digital Sovereignty) बहुत बड़ी चीज़ बन गई है। जब देश के नेता खुद भारतीय प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल करते हैं, तो लोगों को भी भरोसा होता है कि डेटा सुरक्षित रहेगा।
Zoho के सीईओ श्रीधर वेम्बू ने सोशल मीडिया पर लिखा कि भारत को अब अपने डिजिटल टूल्स खुद बनाने होंगे। सरकार का यह समर्थन उनके लिए “प्रेरणा और जिम्मेदारी” दोनों है।
आसान भाषा में समझो, इसका मतलब क्या है?
मान लो, तुम्हारे ऑफिस या स्कूल में अब तक Gmail चलता था। अब अगर सरकार कहती है कि “हम Zoho Mail पर जा रहे हैं,” तो बाकी संस्थान भी सोचने लगते हैं — “अगर गृह मंत्रालय इसे इस्तेमाल कर रहा है, तो हम क्यों नहीं?”
इससे धीरे-धीरे पूरा इकोसिस्टम बनता है — सरकारी विभाग, पीएसयू, कॉलेज, स्टार्टअप्स — सब भारतीय सॉल्यूशन की तरफ आते हैं।
यह सिर्फ देशभक्ति नहीं, बल्कि स्मार्ट डिजिटल स्ट्रेटेजी है। क्योंकि जब डेटा, सर्वर, और सर्विस भारत में होती है, तो सुरक्षा और नियंत्रण दोनों मजबूत रहते हैं।
Zoho के सामने कुछ चुनौतियाँ भी हैं
हालांकि, यह रास्ता आसान नहीं है।
बहुत से लोग Gmail या Outlook से इतने सालों से जुड़े हुए हैं कि उन्हें बदलना मुश्किल लगता है। फाइलें, कॉन्टैक्ट्स, ईमेल फिल्टर — सब पुराने सिस्टम में फंसे रहते हैं।
Zoho को उन फीचर्स और भरोसे को मैच करना होगा, जो Google और Microsoft ने सालों में बनाए हैं। साथ ही, उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि सर्वर लोड, स्पीड, और यूज़र एक्सपीरियंस शानदार रहे।
लेकिन अच्छी बात यह है कि Zoho इस पर लगातार काम कर रहा है। वे अपने ईमेल सर्विस में एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन जैसे फीचर्स जोड़ने की तैयारी में हैं, जिससे सुरक्षा और बढ़ेगी।
क्या आम लोग भी अपनाएंगे?
संभावना तो बहुत ज़्यादा है। जब नेता और मंत्रालय Zoho Mail का इस्तेमाल शुरू करेंगे, तो धीरे-धीरे सरकारी विभागों, स्कूलों, और स्टार्टअप्स में भी इसका चलन बढ़ेगा।
और अगर आम यूज़र्स को Zoho Mail यूज़र-फ्रेंडली, सुरक्षित और भरोसेमंद लगा, तो वे खुद-ब-खुद इसे अपनाएँगे।
यह कुछ वैसा ही है जैसे पहले लोग “Paytm” या “UPI” पर भरोसा नहीं करते थे, लेकिन अब वही देश का सबसे बड़ा डिजिटल पेमेंट सिस्टम बन गया है।
छोटी सी कल्पना करो
सोचो तुम एक एनजीओ चलाते हो। अभी तक Gmail पर काम करते थे। अब सरकार कहती है, “सब सरकारी कम्युनिकेशन Zoho Mail से होगा।” तुम अकाउंट बनाते हो, सेटअप करते हो, और धीरे-धीरे समझते हो — हां, यह तो आसान और भरोसेमंद है।
अगर ऐसा हर छोटे-बड़े संस्थान के साथ हुआ, तो भारत में डिजिटल आत्मनिर्भरता की क्रांति सच में आ जाएगी।
निष्कर्ष
अमित शाह का Zoho Mail अपनाना सिर्फ एक ईमेल बदलाव नहीं है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की दिशा में मजबूत कदम है। यह बताता है कि भारत अब डिजिटल दुनिया में भी “मेड इन इंडिया” को गंभीरता से ले रहा है।
अगर Zoho और ऐसी भारतीय कंपनियाँ यूज़र एक्सपीरियंस और सिक्योरिटी में भरोसा बनाए रखती हैं, तो वो दिन दूर नहीं जब हम पूछेंगे ही नहीं — “Gmail या Outlook?”
क्योंकि तब जवाब होगा — “Zoho Mail, हमारा अपना मेल!”

