पटना में व्यापारी गोपाल खेमका की हत्या, एक साल पहले हटी थी सुरक्षा; बेटे की भी 7 साल पहले ऐसे ही हुई थी हत्या

🕵️‍♂️ घटना का पूरा विवरण: रात के अंधेरे में सुनियोजित हत्या

पटना शहर के व्यस्त और सुरक्षित माने जाने वाले गांधी मैदान इलाके में शुक्रवार रात एक सनसनीखेज वारदात सामने आई। जाने-माने व्यवसायी गोपाल खेमका की उस समय गोली मारकर हत्या कर दी गई, जब वे अपनी गाड़ी से उतरकर अपने आवास की ओर जा रहे थे। चश्मदीदों के मुताबिक, दो बाइक सवार हमलावरों ने उन पर बेहद नजदीक से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं और मौके से फरार हो गए। गाड़ी के पास गिरते ही खेमका खून से लथपथ हो गए। उन्हें तुरंत पास के निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

इस वारदात की सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि यह इलाका राजधानी के बेहद सुरक्षित क्षेत्रों में गिना जाता है, जहां कई बड़े सरकारी दफ्तर, होटल और वीआईपी निवास स्थित हैं। बावजूद इसके, हमलावर बेखौफ आए और वारदात को अंजाम देकर आराम से भाग निकले। यह हत्या इस बात का प्रतीक है कि अपराधी अब किसी भी डर के बिना राजधानी में घातक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।


📚 बेटे की पुरानी हत्या से मिलती-जुलती वारदात

यह दूसरी बार है जब खेमका परिवार को इस तरह की त्रासदी का सामना करना पड़ा है। वर्ष 2018 में गोपाल खेमका के बेटे गुंजन खेमका की भी हत्या बेहद मिलती-जुलती परिस्थितियों में हुई थी। गुंजन उस समय अपने कारखाने पर पहुंचे थे, तभी कुछ बाइक सवार बदमाशों ने उन पर गोलीबारी की थी। उस मामले में भी हमलावरों की पहचान नहीं हो पाई थी और वे मौके से भाग निकले थे।

दोनों हत्याओं की शैली में अद्भुत समानता है—बाइक सवार, अचानक हमला, नजदीक से गोलीबारी, और फिर तुरंत फरार हो जाना। इससे साफ प्रतीत होता है कि यह केवल एक संयोग नहीं, बल्कि किसी लंबे समय से चली आ रही साजिश का हिस्सा हो सकता है। यह भी देखा जा रहा है कि दोनों बार ही सुरक्षा व्यवस्था असफल रही, और प्रशासन किसी प्रकार की रोकथाम नहीं कर सका। इस दोहराव ने बिहार में कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।


🛡️ सुरक्षा हटाने और प्रशासनिक चूक पर उठे सवाल

गुंजन खेमका की हत्या के बाद गोपाल खेमका को राज्य सरकार की ओर से सुरक्षा दी गई थी। लेकिन वर्ष 2024 के अप्रैल महीने में उनकी सुरक्षा अचानक वापस ले ली गई। इस फैसले के पीछे क्या कारण थे, यह अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। सरकार का दावा है कि खेमका ने खुद सुरक्षा की दोबारा मांग नहीं की थी, लेकिन विपक्ष और परिजन इसे प्रशासनिक लापरवाही मान रहे हैं।

इस सुरक्षा हटाने को अब गोपाल खेमका की हत्या से जोड़कर देखा जा रहा है। परिजनों का कहना है कि अगर सुरक्षा होती, तो शायद हमलावर इतने आसानी से वारदात को अंजाम नहीं दे पाते। वहीं, विपक्षी नेताओं ने इसे जंगलराज की वापसी बताया और राज्य सरकार पर विफलता का आरोप लगाया। सवाल यह भी है कि जब एक हाई-प्रोफाइल व्यक्ति को सुरक्षात्मक घेरे में नहीं रखा जा सकता, तो आम जनता कैसे सुरक्षित महसूस कर सकती है?


🧩 जेल कनेक्शन और राजनीतिक बवाल

जांच के दौरान यह आशंका भी जताई गई है कि इस हत्या की साजिश जेल के अंदर से रची गई हो सकती है। पुलिस ने राजधानी की बेउर जेल में छापेमारी की, जहां से कुछ मोबाइल फोन और संदिग्ध दस्तावेज बरामद हुए। इसमें कुछ नंबर और नोट्स शामिल थे, जिन्हें लेकर जांच एजेंसियां गंभीरता से पड़ताल कर रही हैं। इसके अलावा, पुलिस ने कई संदिग्धों को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू कर दी है और घटना की जांच के लिए विशेष टीम का गठन किया गया है।

इस हत्या ने बिहार की राजनीति में भी हलचल मचा दी है। विपक्ष ने सीधे तौर पर मुख्यमंत्री को घेरा और कानून व्यवस्था को पूरी तरह विफल बताया। कांग्रेस, राजद और अन्य दलों ने सरकार से इस्तीफे की मांग तक कर डाली। मुख्यमंत्री ने इस हत्या पर दुख जताते हुए दोषियों को जल्द पकड़ने का भरोसा दिलाया है, लेकिन जनता और पीड़ित परिवार का भरोसा डगमगाता दिख रहा है।

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Prashant Pathak
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