भारत की राजनीति ने एक युग का अंत देखा, जब झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और झारखंड आंदोलन के सबसे बड़े जननायक शिबू सोरेन का निधन हो गया।
81 वर्षीय शिबू सोरेन ने आज सुबह 8:56 बजे दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह लंबे समय से गुर्दा रोग और स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे। उनके निधन की खबर फैलते ही पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई। झारखंड सहित पूरे देश ने एक ऐसे नेता को खो दिया जिसने जीवनभर आदिवासी समाज, गरीबों और हाशिए के लोगों की आवाज को बुलंद किया।
🌱 एक संघर्षशील जीवन की शुरुआत
शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था। बहुत ही कम उम्र में उन्होंने अपने पिता को ज़मींदारों के हाथों मारा गया देखा, जिससे उनमें सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने का जज़्बा पैदा हुआ।
उन्होंने आदिवासी अधिकारों, वन कानून, भूमि अधिग्रहण और सामाजिक शोषण के खिलाफ दशकों तक संघर्ष किया। उनका यह संघर्ष महज राजनीतिक नहीं था, बल्कि एक जनांदोलन था, जो झारखंड की आत्मा से जुड़ा था।
🚩 झारखंड आंदोलन के सूत्रधार
शिबू सोरेन झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन के सबसे अहम चेहरे बने। उन्होंने “झारखंड मुक्ति मोर्चा” की स्थापना कर आंदोलन को नई दिशा दी। आदिवासी समुदाय को संगठित कर उन्होंने केंद्र सरकार के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी, जिसका परिणाम 15 नवंबर 2000 को झारखंड को अलग राज्य के रूप में मिलने के रूप में सामने आया।
राज्य बनने के बाद वह तीन बार मुख्यमंत्री बने और साथ ही केंद्र में कोयला मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी रहे।
🏛️ जनता के नेता “गुरुजी”
जनता उन्हें “गुरुजी” कहकर पुकारती थी, और वे वास्तव में अपने अनुयायियों के लिए मार्गदर्शक थे। उनकी राजनीति कभी भी केवल कुर्सी तक सीमित नहीं रही। गांव-गांव घूमकर आदिवासी चेतना जगाना, स्कूल-कॉलेज में भाषण देना और आंदोलनकारी युवाओं को तैयार करना उनके जीवन का हिस्सा रहा।
🌿 आदिवासी संस्कृति के रक्षक
शिबू सोरेन ने कभी अपनी पहचान को राजनीति पर हावी नहीं होने दिया। वे सिद्धो-कान्हू और बिरसा मुंडा जैसे आदिवासी नायकों की विरासत को आगे बढ़ाने वाले नेता थे। उन्होंने जनजातीय अधिकार, जल-जंगल-ज़मीन और शिक्षा के मुद्दे पर सदन के अंदर और बाहर निरंतर आवाज उठाई।
राष्ट्रीय शोक की घोषणा
उनके निधन की सूचना मिलते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, गृहमंत्री अमित शाह, राजनाथ सिंह, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार सहित देश के कई बड़े नेताओं ने गहरा शोक व्यक्त किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट में लिखा, “शिबू सोरेन जी का निधन एक युग का अंत है। वे गरीबों और आदिवासियों की सशक्त आवाज थे। उनके योगदान को देश कभी नहीं भूलेगा।”
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें “आदिवासी अधिकारों के लिए लड़ने वाला मजबूत स्तंभ” बताया।
झारखंड सरकार ने 3 दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। 4 अगस्त से 6 अगस्त तक राज्य के सभी सरकारी कार्यालय बंद रहेंगे और राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा।
🕯️ अंतिम विदाई: आदिवासी परंपरा और राजकीय सम्मान
शाम को उनका पार्थिव शरीर विशेष विमान से रांची लाया गया और वहां से उनके पैतृक गांव नेमरा ले जाया गया। वहां पूरे राजकीय सम्मान और पारंपरिक आदिवासी रीति-रिवाजों के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। लाखों लोग उनकी अंतिम झलक पाने पहुंचे।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जो उनके पुत्र भी हैं, ने बेहद भावुक होकर कहा:
“आज मैं खुद को शून्य महसूस कर रहा हूँ। पिताजी मेरे मार्गदर्शक थे, मेरी आत्मा थे। उनका अनुभव, संघर्ष और सिखावन हमेशा हमारे साथ रहेगा।”
📘 जीवन परिचय – एक नजर में
| तथ्य | जानकारी |
|---|---|
| पूरा नाम | शिबू सोरेन |
| जन्म | 11 जनवरी 1944, नेमरा, रामगढ़, झारखंड |
| निधन | 4 अगस्त 2025, दिल्ली |
| आयु | 81 वर्ष |
| राजनीतिक दल | झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) |
| प्रमुख पद | तीन बार मुख्यमंत्री, केंद्रीय कोयला मंत्री |
| उपलब्धि | झारखंड राज्य निर्माण आंदोलन के प्रमुख नेता |
🧭 निष्कर्ष: एक विचारधारा की विदाई
शिबू सोरेन का जीवन केवल एक राजनेता का नहीं था, बल्कि एक विचारधारा, एक जनआंदोलन, और एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक था। उन्होंने झारखंड को एक पहचान दिलाई और आदिवासी समाज को हक और सम्मान के साथ जीना सिखाया।
उनका जाना केवल एक नेता का जाना नहीं है, बल्कि उस आवाज का खामोश हो जाना है, जो वर्षों तक जंगलों, पहाड़ों और गांवों से गूंजती रही।
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