आरटीआई खुलासा: पश्चिम बंगाल विधानसभा में छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट अब तक लंबित

Ef97a7da e5b2 43c2 bdec 24c025fece63

आरटीआई (सूचना का अधिकार) कानून के तहत मांगी गई जानकारी से यह अहम खुलासा हुआ है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने अब तक छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में नहीं रखी है। विधानसभा सचिवालय से मिले आधिकारिक जवाब में यह बात सामने आई, जिसने राज्य के लाखों कर्मचारियों और पेंशनभोगियों की चिंता बढ़ा दी है। ये लोग कई सालों से नए वेतनमान के लागू होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं, लेकिन रिपोर्ट पेश न होने से सारा मामला अधर में लटका हुआ है।

सचिवालय का कहना है कि सामान्य प्रक्रिया के तहत किसी भी वेतन आयोग की रिपोर्ट पहले विधानसभा में रखी जाती है ताकि उस पर चर्चा हो सके और फिर आगे की कार्रवाई की जा सके। लेकिन छठे वेतन आयोग के मामले में अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है। न तो रिपोर्ट सदन में रखी गई है और न ही इस संबंध में कोई आधिकारिक सूचना सामने आई है। इससे सरकार की मंशा पर सवाल उठने लगे हैं और कर्मचारी संगठनों के बीच असंतोष का माहौल बन गया है।

इस पूरे मामले को उजागर करने वाले देवप्रसाद हलदार नामक आरटीआई आवेदक हैं, जो बीते कुछ वर्षों से लगातार इस रिपोर्ट को हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने वित्त विभाग, कार्मिक विभाग और मुख्यमंत्री कार्यालय तक पत्राचार किया, लेकिन हर बार उन्हें अधूरी या गुमराह करने वाली जानकारी दी गई। अंत में जब उन्होंने विधानसभा सचिवालय से आरटीआई के ज़रिए जवाब मांगा, तो यह साफ हो गया कि रिपोर्ट अब तक विधानसभा में रखी ही नहीं गई है।

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने छठे वेतन आयोग का गठन कई साल पहले किया था, ताकि राज्य के कर्मचारियों और पेंशनर्स के वेतनमान में आवश्यक संशोधन किया जा सके। केंद्र सरकार ने 2006 में छठा वेतन आयोग लागू कर दिया था, जिसे बाद में अन्य राज्यों ने भी अपनाया। लेकिन बंगाल में यह प्रक्रिया वर्षों से अटकी हुई है, जिससे न केवल वित्तीय नुकसान हुआ है बल्कि कर्मचारियों के मनोबल पर भी असर पड़ा है। वे मानते हैं कि वेतनमान का मसला केवल पैसों का नहीं, बल्कि यह उनके सम्मान और अधिकारों से भी जुड़ा हुआ है।

अब देवप्रसाद हलदार राज्य सूचना आयोग में अपील करने की तैयारी में हैं, ताकि सरकार को मजबूर किया जा सके कि वह रिपोर्ट को सार्वजनिक करे। उनका कहना है कि यह सिर्फ एक कागज़ी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि लाखों परिवारों की उम्मीदों और भविष्य का सवाल है। यह पूरा मामला इस ओर इशारा करता है कि सूचना का अधिकार कानून आम नागरिकों के लिए कितना ज़रूरी है और जब सरकारें जानबूझकर पारदर्शिता से बचती हैं, तो यही कानून लोगों के संघर्ष का सबसे बड़ा हथियार बन जाता है।

आरटीआई (सूचना का अधिकार) कानून के तहत एक आवेदन से पता चला है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने अभी तक छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट विधानसभा में पेश नहीं की है। यह जानकारी विधानसभा सचिवालय ने एक आधिकारिक जवाब में दी है। इस बात का सामने आना राज्य के सरकारी कर्मचारियों और पेंशन पाने वालों के लिए चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि वे सालों से अपने वेतन में सुधार की उम्मीद लगाए बैठे हैं। लेकिन जब तक यह रिपोर्ट पेश नहीं होती, तब तक उस पर कोई चर्चा या फैसला नहीं हो सकता।

विधानसभा सचिवालय ने बताया कि आमतौर पर वेतन आयोग की रिपोर्ट पहले विधानसभा में रखी जाती है, ताकि उस पर चर्चा हो सके और उसके बाद ज़रूरी कदम उठाए जा सकें। लेकिन छठे वेतन आयोग की रिपोर्ट के मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ है। न यह रिपोर्ट विधानसभा में आई है और न ही इसे लेकर कोई आधिकारिक जानकारी दी गई है। इससे लोगों को लग रहा है कि सरकार इस मामले में गंभीर नहीं है।

इस मामले को सामने लाने वाले देवप्रसाद हलदार नामक व्यक्ति ने बताया कि उन्होंने कई सालों से इस रिपोर्ट की कॉपी पाने की कोशिश की है। उन्होंने राज्य के कई सरकारी विभागों में आवेदन किए, जैसे वित्त विभाग, कार्मिक विभाग और मुख्यमंत्री कार्यालय, लेकिन उन्हें हर बार अधूरी या भटकाने वाली जानकारी ही मिली। अंत में जब उन्होंने विधानसभा सचिवालय में आरटीआई लगाई, तब साफ हुआ कि रिपोर्ट अभी तक पेश ही नहीं की गई है।

बता दें कि छठे वेतन आयोग का गठन राज्य सरकार ने कई साल पहले किया था ताकि कर्मचारियों और पेंशनरों के वेतन में बदलाव किया जा सके। केंद्र सरकार ने 2006 में छठा वेतन आयोग लागू किया था और बाकी कई राज्यों ने भी इसे अपना लिया था। लेकिन पश्चिम बंगाल में यह प्रक्रिया अब तक पूरी नहीं हुई है, जिससे लाखों कर्मचारियों को आर्थिक नुकसान हो रहा है। उनका कहना है कि यह सिर्फ पैसा नहीं, बल्कि उनके सम्मान और मेहनत की पहचान भी है।

अब देवप्रसाद हलदार राज्य सूचना आयोग में अपील करने की सोच रहे हैं ताकि सरकार को मजबूर किया जा सके कि वह यह रिपोर्ट जनता के सामने लाए। उनका कहना है कि यह सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं है, बल्कि लाखों परिवारों की उम्मीद और हक का सवाल है। यह मामला दिखाता है कि आरटीआई कानून आम लोगों के लिए एक ताकतवर हथियार हो सकता है, लेकिन जब सरकारें जानकारी छुपाती हैं, तो यही कानून लोगों के संघर्ष का रास्ता बन जाता है। Expres news

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *